घायल लठैत की बात सुनकर गुलनार बोली... जाने दीजिए उन्हें,जी लेने दीजिए अपनी जिन्द़गी,केशरबाई बड़े नसीबों वालीं निकलीं तभी तो उन्हें उनका भाई अपनी जान पर खेलकर उन्हें यहाँ से ले गया,हम जैसे बदनसीबों के तो भाई ही नहीं होते...... तो क्या आप ने केशर को बख्श दिया? घायल लठैत बोला।। कभी कभी कुछ भलाई के काम भी कर लेने चाहिए,गुलनार बोली।। और इतना सुनकर घायल लठैत भीतर चला गया और उसके जाते ही सल्तनत ने गुलनार से पूछा... तो क्या आपने उन सबको वाकई ब्ख्श दिया, कुछ इन्सानियत हमें भी दिखाने का मौका दीजिए,हमें भी तो ऊपर जाकर खुदा