लेकिन एक बात थी। रोग का ख़तरा कितना भी बड़ा हो, अब फ़ोन पर बात करने का सिलसिला पहले से कहीं ज्यादा रसभरा हो गया।अब ऐसी कोई कुंठा तो थी नहीं कि किसी के पास नौकर है, किसी के पास महरी, किसी के पास अर्दली तो किसी के पास बाई। अब तो सब अपने - अपने घर में कैद थे, और सबका एक ही मूलमंत्र- "अपना हाथ जगन्नाथ"!अब ये जलन भी बाक़ी नहीं रही कि आपके तो बेटियां हैं, काम में हाथ बंटाती होंगी... यहां तो निखट्टू बेटे हैं और ऑफिस जाने के लिए हड़बड़ी मचाते पतिदेव, सब अपने ही