वेश्या का भाई - भाग(१०)

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मंगल को परेशान सा देखकर रामजस बोला.... मंगल भइया! इतना परेशान क्यों हो रहो ?मेरी माँ की भी अजीब़ दास्ताँ है।। मुझे नहीं सुनाओगे अपनी माँ की दास्ताँ,मंगल बोला।। क्या करोगे सुनकर? रामजस बोला।। अभी थोड़ी देर पहले तुम ही तो कह रहे थें कि मन का दर्द बाँटने से मन हल्का होता है तो तुम भी मुझसे अपने दर्द बाँट सकते हो,मंगल बोला।। ठीक है तो आज तुमसे मैं भी अपने दर्द बाँट ही लेता हूँ,तो सुन लो तुम भी मेरी रामकहानी और इतना कहकर रामजस ने अपनी कहानी कहनी शुरू की..... मेरी माँ अनुसुइया एक प्रतिष्ठित परिवार