कर्तव्य (11) सुबह अपूर्व भैया सोकर उठे तो ऑंखें सूज रही थी शायद रात को वह बहुत रोये थे । पिताजी ने कहा “अपूर्व क्या बात है तुम कुछ उदास लग रहे हो क्या बात है?” “कुछ नहीं पिताजी “ कहकर वह प्रतिदिन की तरह दुकान खोलने चले गये ,वहीं दिनचर्या पूरे दिन दुकान खोलना और सभी बच्चों की ज़रूरतों के लिए पैसे देना। उनकी किसी को कोई चिंता नहीं और भैया जब बाहर से आते तो उनकी ग़लतियों पर उन्हें डाँटते तो वह चुप रहकर सब कुछ सहन