तड़प--भाग(६)

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चित्रलेखा ने वहाँ जाकर देखा तो उसका होटल जलकर खाक हो गया था,अपना माथा पकड़ने के सिवाय उसके पास कोई और चारा नहीं था,उसके दो तीन दिन तो ऐसे ही चिन्ता में बीते,आग लगने का कोई भी कारण पता ना चला,कुछ लोंगों की उसमें जान भी चली गई थी,चित्रलेखा ने उन सब मृतको के परिवार वालों को मुआवजे के रूप में कुछ रकम दी और वो रकम उसने अपने गाँव के खेत और जमीन को गिरवीं रखकर दी थी।। अब उसके पास केवल जेवरात और उस हवेली के कुछ ना बचा था जिसमें वो रहती थी,अब उसे दिन रात