आलेख मनोभाव रामगोपाल भावुक हम साहित्यकार, भावुक, मनमस्त जैसे उपनाम अपनाकर साहित्य के क्षेत्र में कार्य करने लगते हैं। मेरी दादी माँ मुझे भावुक कहा करती थी। कहती थीं तू तो भावुक है। मैंने यही नाम साहित्य लेखन में स्वीकार कर लिया है। एक दिन इसी नाम के बारे में भावुक मन से मानव मनोवृतियों का विश्लेषण करने बैठ गया। मनुष्य सुख-दुःख की अनुभूति लेकर ही इस संसार में पैदा होता है। रोना और हँसना इन्हीं अनुभूतियों के प्रमाण हैं। इस सुख और दुःख की अनुभूति के रास्ते से चलने पर