प्यार के इन्द्रधुनष - 38

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- 38 - मानव-स्वभाव ऐसा है कि जवानी में पति-पत्नी की इच्छा होती है नितान्त एकान्त की और प्रौढ़ावस्था के गुजरते-गुजरते जब बच्चे बड़े होकर जीवन में नई राहों की तलाश में निकल पड़ते हैं तो उन्हीं पति-पत्नी को अकेलापन खलने लगते है। और बहुधा ऐसा अकेलापन बीमारियों का वायस बन जाता है व जीवन अभिशप्त लगने लगता है। गाँव में रहते हुए हरलाल के साथ भी यही हुआ था। लेकिन शहर में आकर निरन्तर उचित चिकित्सा, देखभाल तथा डॉ. वर्मा की अंतरंग मंडली विशेषकर स्पन्दन के सान्निध्य ने हरलाल को कुछ ही दिनों में चंगा-भला कर दिया। स्पन्दन अधिकतर