चाँदन से आने के पश्चात मैं बाड़मेर में मित्र नेणु जी कीता के पास चला गया। करीब दो महीने वहाँ अध्ययन करने के पश्चात सोचा कि एक बार कोचिंग करनी भी जरूरी है। आज के इस प्रतियोगिता के समय में कोचिंग एक अच्छा सहारा होता है। हालांकि उसके बिना भी सफल हो सकते है लेकिन एक भय मन में रह ही जाता है कि कोचिंग के बिना शायद बेड़ा पार न हो सकेगा। लेकिन अधिकतर नोरे के मित्र तो जयपुर जा चुके थे और अपने -अपने रूम में सेट हो चुके थे। मैं किसके साथ जाऊं और किनके साथ रहूंगा।