मुझे डर लगता है....

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हैलो !अंकल! मैने ये शब्द सुनकर अनसुना कर दिया,मुझे लगा उसने किसी और को पुकारा होगा,फिर जब मैने नहीं सुना तो उसने एक बार फिर से पुकारा,मुझे हार कर पीछे मुड़ना ही पड़ा,चूँकि मैं बाँलकनी मे सुबह की चाय पीते हुए पेपर पढ़ रहा था और पेपर पढ़ते समय मुझे किसी का भी डिस्टरबेंस अच्छा नहीं लगता।। मैं मुड़ा तो वो फिर बोली..... हैलो! अंकल! मैं चुनमुन,हम अभी कल ही इस घर में रहने आएं हैं।। उसके बोलने का अन्दाज इतना प्यारा था कि कोई भी आकर्षित हो जाएं तो मैं भी उस बच्ची के मोह में फँसकर