जीवन वीणा - 5

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केवल भौतिक जीवन जीना, एकांकी वा अनहितकारी ।अध्यात्मिक जीवन के बिन नहिं,जीवन होय पूर्णता धारी।।धर्म-अर्थ वा काम-मोक्ष की, श्रेष्ठ चतुष्टय नीति बखानी ।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।धर्म-अर्थ वा काम-मोक्ष का, है अद्भुत पुरुषार्थ चतुष्टय ।भौतिक,अध्यात्मिक जीवन का,यह अद्भुत संगम है निश्चय।।अर्थ-काम भौतिक जीवन है, धर्म-मोक्ष प्रभुता अगवानी।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।धर्म यदपि अध्यात्म नहीं है,पर भौतिकता हित सुखकारी।जहां उपेक्षा धर्म-मोक्ष की, वहां बने जन भ्रष्टाचारी ।।अनाचार, व्यभिचार घृणा वा, नफरत करती खींचातानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।अंदर से अशांत है मानव व्याकुल है बेचैन