वह अब भी वहीं है - 33

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भाग -33 जमीन पर ही सही, कुछ देर लेट लेने से मुझे थोड़ी राहत मिल गई थी। मैं उठा और किसी तरह मंदिर के गेट पर पहुंच कर, हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। अंदर एक पुजारी आरती कर रहा था। दूसरा पुजारी घंटा बजा रहा था। शंकर भगवान को मैंने भी प्रणाम किया। दस मिनट की आरती पूरी कर दोनों पुजारियों ने भगवान के चरण रज माथे पर लगाए। प्रसाद वाला डिब्बा उठाया चार क़दम पीछे चल कर मंदिर के बाहर आ गए। मैं मंदिर की चार सीढ़ियों के एकदम नीचे सड़क पर था। पुजारी ने मुझे प्रसाद देते