अनजान रीश्ता - 66

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पारुल ऐसे ही रेस्टोरेंट में इंतजार कर रही थी। आधे घंटे से वह यहां अकेले अविनाश का इंतजार कर रही थी । पारुल का गुस्सा तो मानो जैसे आसमान छु रहा था । वह जानती थी यह इंसान भरोसे के लायक तो बिल्कुल नही है। पता नहीं क्या सोचकर वह यहां आई थी। ( गघी! बिलकुल इडियट हो तुम खुद को ही मन में कोश रही थी। ) फिर एक बार अपनी वॉच में समय देखते हुए रेस्टोरेंट से बाहर देख रही थी। की कही अविनाश का अता पता हो लेकिन बाहर एक परिंदा भी नही दिख रहा था ।