कबाड़

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कबीरदासजी किसी विश्वविद्यालय में नहीं गए थे. लेकिन उनके ज्ञान के बारे में किसी को संदेह नहीं है. अपने अनुभव को उन्होंने काफी सुंदर तरीके से नपे-तुले शब्दों में बयान किया है. इसका कारण क्या रहा होगा? यह विचारणीय है. उन्होंने अपने मस्तिष्क में ‘कबाड़’ को जमने नहीं दिया होगा. हमेशा सफाई की होगी. बात भी सही है. ‘कबाड़’ की सफाई होती ही रहनी चाहिए. ‘कबाड़’ घर में हो या दिमाग में – नियमित सफाई से ही बात बनती है. मनुष्य के पास सबसे खतरनाक उसकी बुद्धि होती है. बुद्धि के साथ-साथ विवेक का होना आवश्यक है. लेकिन विवेकी