कल रात यह क़ुबूल कर लिया कि तुम जा चुकी हो। यूं तो तुम्हारे जाने का सिलसिला महीनों पहले सुरु हो चुका था मगर दिल तुम्हारे चले जाने को कबूल नहीं कर पा रहा था। कल समझ आया कि रिश्ता ख़त्म होने से ख़त्म नहीं होता। रिश्ता ख़त्म तब होता है, जिस लम्हे में हम रिश्ते की मौत कबूल कर लेते हैं।पिछले पांच सालों में यह पहला मौक़ा है जब लिखते समय मेरे हाथ कांप रहे हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या लिखूं। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं यह क्यों लिख रहा हूं। तुम्हें इतनी