स्त्री.... - (भाग-17)

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स्त्री.....(भाग--17)सुबह का उगता सूरज तो बहुत बार देखती रही थी....पर उस सुबह मुझे अपना शरीर बहुत हल्का लग रहा था।रिश्ते के बोझ से कंधे झुक गए थे, तो झुक कर चलने लगी थी, मतलब नजरें झुकी रहती थी हमेशा जमीन की तरफ।वो सूरज मेरे आत्मविश्वास को बढावा दे रहा था......ऐसा लग रहा था कि मेरा सही सफर अब शुरू हुआ है। मेरी हिम्मत लौट आयी थी। 16 साल की उम्र में शादी और 9-10 साल पुरानी शादी ने कुछ जल्दी ही बढा कर दिया था.....। अभी मुझे बहुत कुछ करना है अपने सपने पूरे करने के लिए.....सिर्फ शादी ही तो