वारिस

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आज गायत्री का विवाह हो रहा था।उसकी बगल में अच्छी डील-डौल का देखने में सजीला सा दूल्हा बैठा हुआ था जो बाल सुलभ कौतूहल से सारा ताम-झाम देख रहा था, कभी दुल्हन बनी गायत्री का घूंघट उठाकर झांक लेता,फिर पिता की झिड़की सुनकर नाराज होकर मुँह बनाकर पंडित जी के कहे अनुसार रस्मों को करने का प्रयास करने लगता।गायत्री उदास सी यंत्रवत सारे रस्मों का अनुपालन करती जा रही थी। कितने स्वप्न होते हैं युवतियों के नेत्रों में अपने विवाह एवं भावी जीवन को लेकर।लेकिन एक गरीब की बेटी को शायद यह अधिकार नहीं होता।गायत्री ने भी अपने जीवन के लिए