सत्त्व, रज और तमगुण :- गुण का अर्थ होता है अनुकूलता अर्थात् जिसमें कर्ता का या धारण करने वाले का हित निहित होता हैं। कर्ता की धारण करने वाले का हित अर्थात् संतुष्टि निहित होती हैं। संतुष्टि से तात्पर्य हैं उचितानुकूल कामनाओं की पूर्ति की फलितता। यदि यथार्थ दृष्टिकोण से देखा जायें तो अनंत में जो भी है, जैसा भी है उचित है अर्थात् सभी के लिये अनुकूल हैं। कुछ अच्छा नहीं, बुरा भी नहीं, आकर्षक नहीं हैं और घृणित भी नहीं हैं, सुंदर तथा कुरूप, ज्ञान तथा अज्ञान आदि नहीं हैं अतः समता ही अनंत की वास्तविकता थी, है