लागी छूटे ना

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शिव ....रमा जब भी यह नाम सुनती है, मन में किसी मंदिर की घण्टी बजने लगती है। कितना गहरा है इस शब्द से लगाव, यह उसकी बरबस छलक आई आँखें बता सकती हैं। एक ऐसा प्रेम जो अधूरा था, एक तरफा था, पर कितना सुंदर था ! यह उसके जीवन का पहला नहीं अंतिम प्यार साबित हुआ, क्योंकि उसके बाद कोई पुरूष उसे अच्छा ही नहीं लगा। बचपन में उसकी पढ़ाई का विराध करते समय उसके पिता अक्सर ताना देते थे ’कलेक्टर बनेगी क्या’। शायद तभी से उसके मन-मस्तिष्क में कलेक्टर शब्द बस गया हो। शायद इसीलिए कलेक्टर शिव को