इश्क फरामोश - 15

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15.  कभी छूटा ही नहीं था रौनक आज घर आया तो जैसे वो रौनक नहीं था. कोई और ही था. या शायद जब रौनक था तब उसके बाद किसी एक दिन से उसका रौनक होना छूट गया था. वह डॉक्टर छाबडा हो गया था. आज अचानक एक मरीज़ आयीं और उसकी बेटी ने उसे फिर से रौनक बना दिया था. आज फिर एक बार भापाजी पर रोष हो आया था. ऐसा रोष जो कभी व्यक्त नहीं कर पाया था. मगर अंदर ही अंदर हलके हलके पल रहा था उसके. दिन तो मरीजों के साथ निकल गया था. शाम आज उसकी