इश्क फरामोश - 9

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9. ऐसा भी वक़्त आता है अगले दिन सुबह जब किरण अपने बेडरूम में दाखिल हुयी तो आसिफ सो ही रहा था. किरण ने उसकी तरफ देखा और नज़र घुमा ली. वह अपनी ज़िंदगी तो बर्बाद कर चुकी थी, सुबह और आज के दिन को जाने क्यूँ बचा ले जाना चाहती थी. इसी तरह अब उसे जीना था. एक-एक दिन को बचा कर ले जाते हुए, फिसलन भरी राह पर बच-बच कर चलते हुए. एक एक दिन बचा कर ही एक उम्र तक लांघ कर जाना होगा. किरण का दिल इस वक़्त धुंआ-धुंआ हो रहा था. जाने कैसे दिन आ