ये उन दिनों की बात है - 37

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दरअसल एक नए एहसास से ही हम दोनों रोमांचित हो उठे थे | एक अलग-सा एहसास मन को मदहोश कर रहा था | दिल में कुछ-कुछ होने लगा था जो ऐसा था जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल था | चाहता तो वो भी था और मैं भी | मैं अपने इन्ही ख्यालों में खोयी सी थी की उसने अपना हाथ मेरे हाथों में ले लिया | दिव्या!! क्या तुम भी वोही सोच रही हो जो मैं सोच रहा हूँ!! हे भगवान!! इसे मेरे मन की बात कैसे पता चली? पढ़ सकता हूँ तुम्हे, महसूस कर सकता हूँ तुम्हे, प्यार