जु़र्म - 3 - अंतिम भाग

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3. अपरा अपनी बेटी के लाड़ में खोई-खोई, कॉलेज के समय में पहुंच गई| उसने अपना हाथ अनुष्का के हाथ से छुड़ाकर उसके बालों में उंगलियों से शुरू कर सहलाना शुरू कर दिया| और बोली... ‘अनुष्का! तुम्हें तो पता ही है, तुम्हारे नाना-नानी मुरादाबाद में रहते थे| उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई के लिए मुझे दिल्ली भेज दिया था| मुझे हॉस्टल में रहना पड़ा| कॉलेज का फाइनल ईयर था| हम चार दोस्तों का बहुत अच्छा ग्रुप था| उस शाम बहुत तेज़ बारिश हो रही थी| हम दोस्तों ने योजना बनाई कि बारिश में कहीं दूर किसी थड़ी पर बैठकर चाय पीते