बरसो रे मेघा-मेघा - 1

  • 7.7k
  • 1.7k

भाग एक : वो कागज़ की कश्ती मरुस्थल की तपती सुनहरी रेत पर जब आकाश में घिर आये स्लेटी बादल अपने आगोश में लेने की कोशिश करती तो रेत के गुब्बार भी शांत होकर धरती पर बिछ जाते, वातावरण में ठंडी हवा के झोंके जन-जन के तन को ही नहीं बल्कि मन को भी शीतल कर जाते, बूंदों से सराबोर स्लेटी घुंघराले बादल आखिर धरती पर बिछी रेत को आगोश में लेने की लुका-छिपी में आखिर बरस ही पड़ते | तपती रेत में छन्न-सी शांत होकर गर्म हवा के झोंके आसमान की ओर उछालती | आसमान बादलों की मार्फ़त ठंडी