बेपनाह - 28

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28 दोनों के तन और मन दोनों ही जल रहे थे अब ऐसा लग रहा था अगर इस प्रेम के उमड़ते सैलाब को नहीं रोका तो फिर न जाने क्या हो जायेगा, चाय के कप एक तरफ रखे हुए थे और वे दोनों उस सैलाब में बहे जा रहे थे उन्हें कोई नहीं रोक सकता था, जब ईश्वर ने ही उनको इस अटूट बंधन में बांधने का फैसला ले लिया था। एक हो गए दो जिस्म, एक हो गयी दो जान, प्रेम ने उन्हें अपने आगोश में जकड़ लिया । दो पल में सब बदल गया एक नयी दुनिया बन