किसी ने फोन नही उठाया,और मैंने दुबारा फोन मिलाना उचित नही समझा,इधर शौर्य की इंगेजमेंट की रश्म पूरी हो चुकी थी,सब शौर्य को बधाइयाँ दे रहे थे,रात के नो बज चुके थे तो अब मुझे वहाँ से घर के लिये निकलना था।तो मैं अतुल और गौरब से चलो यार मैं निकलता हूँ,क्योंकि गौरब वही पास में जहाँगीरपुरी और अतुल आजदपुरी से था।और उनसे इतना कह कर 'मैं शौर्य के पास जाकर उसको बधाई देते हुये,उस समय शौर्य के साथ में उसकी वर्षा भी वही मौजूद