उजाले की ओर --संस्मरण

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उजाले की ओर ----संस्मरण ------------------------- नमस्कार स्नेही मित्रों कैसे हैं आप सब ? बहुत अच्छे होंगे | कभी-कभी लगता है कि आप सबसे परिचित हूँ मैं | जैसे किसी अदृश्य रिश्तों की डोरी से जुड़ जाना और महसूस करना कि कहीं न कहीं हम सब जुड़े हुए हैं | शायद यह प्र्कृति का ही संकेत होता है कि हमें जोड़कर रखती है | दुनिया के एक कोने में कोई होता है ,दूसरे में कोई लेकिन हम जुड़ ऐसे जाते हैं जैसे एक ही पिता की संतानें हों | कहीं न कहीं यह सही भी है ,यदि हम