कालिदास के साहित्य में श्रंगार रस

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शब्दों के देवी संगीत और लय मे संजोया वह मानव जीवन जो मानो विधाता ने शंख से खोद कर, मुक्ता से सींच कर, मृणाल तंतु से सॅवार कर, कुरज कुंद और सिंधुवार पुष्पों की धवल कांति से सजाकर , चंद्रमा की किरणों के कुचूर्ण से प्रक्षालित कर और रजत रज से पोछ कर, जिसका निर्माण कि या वह जीवन आद्योपांत प्रेम और श्रृंगार की रस अनुभूति से आप्लावित है मानव संवेदना सदैव से ही सौंदर्य की अभिलाषणी रही है। वह सदैव नवीन रूप और नूतन सौंदर्य का अन्वेषण करती रही है। मानव जीवन के समस्त लक्ष्यों में सौंदर्य ही सर्वोपरि है