भवभूति का नाट्य लोक और मनोविज्ञान

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जीवन के इस सुंदर तम उद्यान में हृदय के भावों की सुषमा चारों ओर बिखरी हुई है। कभी कोई ऐसा विशेष क्षण आता है जब वह तूलिका के चित्र में बंध जाने के लिए बाध्य हो जाती है। आंसुओं की गहराई और अधरों पर मधुर मुस्कान यही तो सब नाटक की विशेषता है। नाटककार जीवन का मार्मिक सखा होता है। वर्षों के साहचर्य से उसे जीवन की प्रत्येक मुस्कान और उसके पीछे छिपे हुए उच्छवास की गहराई का भली-भांति ज्ञान होता है। यही कारण है कि प्रेम और करुणा जैसे गहन भावों को उभारने में महाकवि भवभूति सिद्धहस्त हैंन तत्ज्ञानम,