टेढी पगडंडियाँ 16 पूरा दिन सूरज ने जी भर कर आग उगली । लू भरी हवाएँ चलती रही । ऐसा लग रहा था आज दिन ढलेगा ही नहीं । इसी तरह करते करते आखिर पाँच बज गये । अब धीरे धीरे दोपहर ढलने लगी थी । सूरज ने अपना रथ पश्चिम की ओर मोङ लिया था पर धरती की तपन अभी ज्यों की त्यों बनी हुई थी । आसमान से जो आग अब तक गिरी थी , धरती उससे मुक्त न हुई थी । अवतार सिंह ने नौकरों चाकरों को बुलाया और डयोढी में पानी छिङकने को