विशाल छाया - 1

  • 15.2k
  • 3
  • 7.6k

इब्ने सफ़ी अनुवादक : प्रेम प्रकाश (1) रमेश ने कमरा सर पर उठा रखा था । उसकी आँखे लाल थी मुंह से कफ निकल रहा था । बाल माथे पर बिखरे हुए थे । कमीज़ आगे पीछे से फट कर झूल रही थी और वह पागलो के समान कमरे की एक एक वस्तु उठाकर फेंक रहा था ।  सरला आवाज़ सुन कर अपने कमरे से निकली और जैसे ही रमेश के कमरे का द्वार खोला –एक पुस्तक तीर के समान आकर उसके मुंह पे पड़ी और वह बौखला कर पीछे हट गई । कुछ क्षण तक खडी रमेश को घूरती