मेरा नैनीताल, तेरा नैनीताल:मैंने कभी सोचा नहीं था मैं उससे इतना जुड़ जाऊँगा। वह मुझे अच्छी लगती थी,दूर से। वह मेरे पास आती थी जैसे समय आता है और चली जाती थी जैसे समय जाता है। जाड़ों की ठंडी हवाओं में प्यार दौड़ता है और गर्मी आते-आते परीक्षा की सीढ़ियां चढ़ने लगता है। पहाड़ियां पहले की तरह अचल-अटल होती हैं। धूप अपना स्वभाव बदल चुकी होती है। वह प्यार वायवी सा, टलीदार हो चुका है। थिगलीनुमा मेघों सा आकाश में लटका। अपनी सोच के अनुसार वह गोते खाता है।पकड़ कर स्थिर करने का प्रयत्न तब नहीं होता है। सालों बाद