प्रकाश और लाज बातों बातों में अस्पताल पहुँच गए,प्रकाश बोला... अगर बुरा ना माने तो क्या मैं भी करन को देखने चल सकता हूँ? हाँ..हाँ...बुरा किस बात का? करन को भी अच्छा लगेगा आपसे मिलकर,लाज बोली।। ठीक है तो मैं टैक्सी पार्किंग में लगा दूँ फिर चलते हैं,प्रकाश बोला।। और दोनों करन से मिलने पहुँच गए,जहाँ सुरेखा पहले से मौजूद थी,लाज को देखकर बोली.... दीदी! आ गई आप! मैं कब से आपका इन्तज़ार कर रही थी? और ये जनाब! कौन हैं? जी,मैं इनका दोस्त प्रकाश हूँ,प्रकाश बोला।। जी,केवल दोस्त या ख़ास दोस्त,सुरेखा मज़ाक करते हुए बोली।। चुप कर ,हर घड़ी