विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(७)

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उधर जेल में... आओ धर्मवीर! आओ...कैसे हो ?जेलर साहब ने धर्मवीर से पूछा।। जी !बहुत अच्छा हूँ,कहिए कैसे याद किया मुझे?धर्मवीर ने जेलर साहब से पूछा।। बस,खुशखबरी थी तुम्हारे लिए इसलिए याद फरमाया,जेलर साहब बोले..... मेरे नसीब में ,वो भी खुशियाँ,क्यों मज़ाक करते हैं साहब! मै भला अभागा कब से खुशियों का हकदार होने लगा,खुशियों ने तो सालों पहले ही मुझसे दामन छुड़ा लिया था,धर्मवीर बोला।। अरे,कैसी बातें करते हो धर्मवीर! हमेशा रात नही रहती,जब खुशियाँ नहीं रहीं तो ग़म भी नहीं रहेंगें,जेलर साहब बोले।। ये तो सब कहने की बातें हैं जिसका एक रात में ही सबकुछ उजड़ गया