तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग ३

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११. समानता का अधिकार एक वृक्ष जो उम्रदराज हो चुका था और कभी भी जमीन पर धराषायी होने की स्थिति में था। वह अपनी जवानी के दिनो को याद कर रहा था जब उसकी चारों दिषाओं में फैली हुई षाखाओं के नीचे पथिक आराम करते थे और बच्चे फलों का आनंद लेते थे। एक वृद्ध व्यक्ति उसके तने का सहारा लेकर विश्राम करने लगा। वह मन ही मन सेाच रहा था कि उसका एक पुत्र और पुत्री दो बच्चे है। उसने अपने पुत्र पर पुत्री की अपेक्षा