मृगतृष्णा तुम्हें देर से पहचाना - 7 - अंतिम भाग

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अध्याय सात आ रही मेरे दिवस की सांध्य बेला उम्र का सांध्यकाल निकट है।सूर्य ढलने को है पश्चिम दिशा ढलते सूरज को अपने आँचल से ढँक रही है।आकाश का रंग तेज़ी से बदल रहा है।गाएँ अपने बथानों की तरफ भाग रही हैं।पक्षी अपनी उड़ान भूलकर अपने घोसलों की तरफ उड़ रहे हैं।विश्राम का समय है।सभी अपने घरों में अपनों के पास लौट रहे हैं, पर मैं कहाँ लौटूँ?किस अपने के पास!अपनी उड़ान स्थगित करके कहाँ थिर होऊँ?न कोई अपना है न किसी का साथ!गनीमत है एक छोटा -सा घर है, जिसने मुझे अपनी गोद में विश्राम दिया है।हर दुःख में