फ़ौजी...

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अरे,सूर्या की मां! सूर्या की पसंद के मोतीचूर के लड्डू बनाएं हैं ना!, दौलतराम जी ने अपनी पत्नी जानकी से पूछा।। लो जी! अब गुस्सा मत दिलाओ,कल से लगी हुई हूं अपनी बेटे की पसंद की चीजें बनाने में और अब जाके तुमको मोतीचूर के लड्डू याद आ रहें हैं,एक तो तुमसे किसी काम का आसरा नहीं है,बस बैठे बैठे हुक्म झाड़ते रहते हो,जानकी गुस्से से बोली।। अरी भाग्यवान ! नाराज़ क्यों होती हो? मदद के लिए कहा तो होता, दौलतराम जी बोले.... बस...बस...रहने भी दो ये झूठी हमदर्दी,बस तुम तो यूं ही हुक्का गुड़गुड़ाते रहें, यहीं बैठे बैठे सूर्या