ये उन दिनों की बात है - 28

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पहली बार मैं किसी लड़के की मोटरसाइकिल पर बैठी थी और वो लड़का कोई और नहीं बल्कि सागर था, "मेरा सागर" जिसे मैं बहुत ज्यादा चाहती थी | फिर भी मैं कुछ अजीब और शर्म-सा महसूस कर रही थी |तुम बिलकुल परेशान ना हो, दिव्या, आराम से बैठो |हे भगवान ये मेरा मन पढ़ सकता है, मैं मन ही मन बुदबुदाई |कुछ कहा तुमने...........नहीं!!अगर ऐतराज ना हो तो तुम अपना हाथ मेरे कंधे पर रख सकती हो | कुछ शर्माकर, सकुचाकर मैंने अपना हाथ उसके कंधे पर रख दिया |सागर के चेहरे पर एक बड़ी से मुस्कान आ गई थी