पंद्रह लोगों का भरा पूरा परिवार था, जिस घर में सीमा ब्याहकर आई थी।सुबह पांच बजे से चूल्हा जलता तो दिन के दो बजे तक जलता ही रहता और फिर चार बजे से शाम के खाने की तैयारी शुरू हो जातीं।मायके में भी 10 जनों का भरा पूरा परिवार था तो कोई खास परेशानी नहीं हुई।लेकिन मायके और ससुराल की जिम्मेदारी में फर्क होता है।माँ के दिये संस्कार ही थे कि उसने खुद को ससुराल की जिम्मेदारियों में पूरी तरह झोंक दिया।18 बर्ष की अल्हड़ किशोरी कब जिम्मेदार औरत बन गई पता ही नहीं चला।पति रेलवे में टी सी थे