अर्पण--भाग (१२)

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दोनों ही मोटर से उतरे और तालाब की सीढ़ियों पर जा बैठे___ डूबते हुए सूरज की लालिमा तालाब को ढ़क रही थी और सूरज धीरे धीरे तालाब के उस ओर के छोर में छिपता चला जा रहा था,तालाब में बैठे हुए पंक्षी अब अपने घोंसलों में लौटने की तैयारी में थे,तालाब की खूबसूरती देखते ही बनती थी,तभी श्रीधर ने एक पत्थर जोर से तालाब की ओर उछाला,पत्थर तालाब के जल की सतह पर तरंगें बनाता हुआ,तालाब के पानी में विलीन हो गया।। तभी राज बोली____ क्यों श्रीधर बाबू! प्रेम भी ऐसा ही होता है ना! जैसे कि ये पत्थर