स्तुति के आसूं भरे चेहरे पर, सुनीता जी अपने आसुओं से भरी आंखों में प्यार भरकर , उसे प्यार से देखती है और फिर उसे गले से लगा लेती है , और स्तुति ने जो अब तक का धीरज धरा हुआ था , वह अब सुनीता जी का प्यार भरा स्पर्श पाते ही , सैलाब की तरह उमड़ने लगता है और वो अपनी दोस्त का दर्द याद कर फूट - फूट कर रोने लगती हैं । सुनीता जी लगातार उसके बालों में हाथ फेर रही थी और उसे चुप करवा रही थीं ........। तभी दरवाजे पर दस्तक होती , तो