आइये न प्लीज , अंदर आ जाइये आख़िर बाहर क्यों खड़े हैं, उसकी आँखें खुली और ओठ सिले हुए थे और नज़र सिर्फ़ उन अधरों पर थे जो बार - बार एक दूसरे से मिलते और बिछड़ जाते, उन अधरों को देख कर मुझे अपने बचपन के चिड़िया के बच्चे की याद आ गयी थी जिसे मैंने लाल रंग में रंगा था और रँगते समय ओ अपने टोंट को खोलती और बन्द करती फर्क सिर्फ इतना था कि टोंट उसके सूखे और कड़े थे , जबकि ठीक इसके विपरीत उसके ओंठ रस से भरे और चासनी में नहाये हुए लगते