(18) “इसकी कोई आवश्यकता नहीं है बाबा ।” राजेश ने भरे कंठ से कहा । वह निशाता के बाप से बहुत अधिक प्रभावित हुआ था । “नहीं बेटे ! ऐसा कौन है जो दूसरों के लिये अपनी जान खतरे में डालें । तुम्हारा एहसान न मानना संसार की एक सबसे बड़ी नीचता होगी ।” “मैंने अपना कर्तव्य पूरा किया था बाबा ।” कह कर राजेश उस दूसरे आदमी के पास बैठ गया जो अब तक उसी प्रकार पड़ा हुआ था और जिसने फिर आंखें बंद कर ली थीं । वह कुछ क्षण तक उसे देखता रहा । फिर उसे थपथपाने