तेरे खुशबू में बसे खत मैं जलाता कैसे प्यार में डूबे हुए खत मैं जलाता कैसे तेरे खत आज मैं गंगा में बहा आया हूँ आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ जगजीत सिंह साहब की ये गज़ल मानों आज सुमित का कलेजा चीर देने को आतुर थी । वो अपने कमरे में बैठा सपना के दिये खतों को आज बार-बार, हजार बार पढ़ रहा था । पढ़ते-पढ़ते वो कभी मुस्कुराने तो कभी हंसने तो कभी रोने लगता । वो कई-कई बार उन सारे खतों को उलट-पलटकर देखता । "यार सुमित कम से कम आज तो मत पी यार