इसी तरह हकीम पुर गांव अब पुरी तरह से बदल चुका था।रमेश हर रविवार को हकीम पुर गांव में जाता था और वहां अपने अस्पताल का कामकाज का सारा देखरेख करके फिर लौट आते थे।रमेश जब भी उस अस्पताल को देखते थे उसे अम्मा और बाबूजी की बातें याद आती जैसे अम्मा बोल रही है कि रमेश बेटा आज आलु के परांठे के संग मीठी गुड़ वाली आम की चटनी।।अम्मा अब ना मिलेगा तेरे हाथों का स्वाद, अब ना मिलेगा तेरे बातों का रस, अब ना मिलेगा तेरे इंतज़ार का फल।।रमेश ने अपनी आंखें पोछते हुए बस में बैठ गए।जो