छत्रसाल और वैद्यनाथ जी दोनों ने ही महाराज अपार का पुतला बनाना प्रारम्भ कर दिया,दोनों प्रातः से सायं तक तलघर में यही कार्य करते और पुतले को तलघर में ही घास के तले छुपाकर बाहर आ जाते,ये कार्य दोनों को छुप छुपकर करना पड़ रहा था कि कहीं किसी को कोई सूचना ना मिल जाएं, छत्रसाल भी बहुत ही निपुण था इस कार्य में और स्वभाव का भी सरल और सादा व्यक्ति था।। उसने अपने कार्य और अपने स्वभाव के कारण शीघ्र ही सबका हृदय जीत लिया,चार पाँच दिंनो में ही पुतला तैयार हो गया,बस कुछ अंतिम कार्य शेष