मार खा रोई नहीं - (भाग दस)

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प्रधानाचार्य के असल रूप की बानगी कई बार देखने को मिली थी पर कहते हैं न कि जब तक अपने पैर बिवाई नहीं फटती तब तक बिवाई वाले पैरों के दर्द का अहसास नहीं होता। मैं सोचती थी कि वे संन्यासी हैं और जाति, धर्म ,क्षेत्रवाद, व्यक्तिगत सम्बन्धों और हर तरह के भेदभाव से बहुत ऊपर हैं पर बार -बार वे ऐसा कुछ कर जाते कि मन खिन्न हो जाता।फिर भी मैं कभी और कहीं भी उनकी बुराई नहीं करती।हमेशा उनके सकारात्मक पक्ष का ही जिक्र करती।इतने मुग्ध भाव से उनका जिक्र करती कि इधर के सहकर्मी कभी -कभी मुझसे