जीवन का आधार कर्म

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श्रीमद भगवत गीता के दूसरे अध्याय के 47वें श्लोक "कर्मण्य वाधिकारस्ते माँ फलेशु कदाचन" के अनुसार मनुष्य का अधिकार केवल उसके कर्मो पर है । यूं तो कर्मों की व्याख्या की जाये तो कई ग्रन्थ बन जायेंगे कर्मो की बहुत ही गुह्य परिभाषा है। वास्तव में हमारा जीवन ही कर्म पर आधारित है। हमारे जन्म का आधार ही कर्म से सम्बन्ध रखता है इसलिए कर्मों का तत्वज्ञान (फिलॉस्फी) समझने के पहले हमको आत्मा का ज्ञान होना आवश्यक है। अर्थात गीता के 47वें अध्याय के २२वें श्लोक "वासांसि जीर्णानी यथा विहाय नवनि ग्रहाती नरोपराणि तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवनि देहि"