प्रस्तर मूर्ति के समान स्थिर बैठी दिव्या निर्निमेष,सूनी अश्रुविहीन नेत्रों से सामने की दीवार देखे जा रही थी।सफेद चेहरे पर ठहरी हुई पुतलियां इंगित कर रही थीं कि वह जीवित तो है, परन्तु संज्ञाशून्य हो चुकी है, अपने जीवन में विधाता या शायद निष्ठुर लोगों के कपट भरे आघात से।भले ही इसे बदकिस्मती का नाम दे दिया जाय लेकिन उसकी तकदीर की लकीरों में बर्बादी लिखने वाले लोग क्षमा के योग्य तो कदापि नहीं।ये अलग बात है कि उनकी सजा सिर्फ़ ऊपरवाले के हाथ में है। आह!कितने क्रूर होते हैं वे लोग जो अपने निहित स्वार्थ के लिए किसी