अभी सुबह होने में कुछ देर बाकी थी | हरखू , बाबू जी जमीदार की घर की ओर भगा जा रहा था| भोथरे काका जिनका द्वार हरखू से सटा हुआ था बाहर ही पुरवाई का आनन्द लेने के लिए चारपाई डाले हुए थे ;बिचारे रात भर के जगे दस्त से परेशान धोती की बाँध को ढीला किये लेटे थे ,भोथरे काका वैद जी के घर जाना चाहते थे ,लेकिन ; रामू जो भोथरे काका का लड़का था अपनी पत्नी को लेकर अपनी ससुराल गया था | जिससे भोथरे काका का अकेले जाना एक सन्घर्ष सा था ; उनके पास एक