वो दिन अभी भी याद आता है जब पापा से बहुत जिद करने के बाद 5 रूपए मांगे थे क्यूंकि क्लास में तुमने कहा था तुम्हे गोलगप्पे बहुत पसंद हैं…और मुझे तुम अच्छी लगती थीं…तुम्हारा और मेरा घर आजू बाजू था और रास्ते में ‘कैलाश गोलगप्पे वाला’ अपना ठेला लगाता था…घर जाने के दो रास्ते थे तुम दुसरे रास्ते जाती और मैं गोलगप्पे की दुकान वाले रास्ते…उस दिन बहुत खुश था…नेवी ब्लू रंग की स्कूल की पैंट की जेब में १ रुपये के पांच सिक्के खन खन करके खनक रहे थे और मैं खुद को बिल गेट्स समझ रहा था…शायद